धर्म कोई कहता नहीं
दर्द दे कर तूने क्या पाया ?
क्या दर्द देने ही जहां में आया ?
देकर खुशियां थोड़ी खुशियां ले लो,
ऐसे न तुम जीवन से खेलो,
जीने दो औरों को और तुम खुद भी ,
अपना जीवन जी लो,
पत्थर सा तेरा दिल क्यों है?
धर्म के नाम मरता मारता क्यों है ?
मासूम बेगुनाहों को बेवजह,
डरा धमका संघारता क्यों है ?
धर्म कोई कहता नहीं हैl
जान लेने देने को,
गुरु ग्रंथ साहिब, बाइबल ,गीता और कुरान तुम देखो, एक एक पन्ने मानवता का संदेश देते भगवान देखो ,
इंसान बन धरा पर आया ,
इंसानियत का न तुझे ,
कोई यहां पाठ पढ़ाया l
उल्टी-सीधी बातें बता कर तुझे तेरी राह से भटकाया,
जीवन तेरा तेज हवा का झोंका ,
कब आया कब चला गया ,
तुझे इसका भान नहीं कि तू कितना यहां छला गया l
©® रीता यादव