” धर्म की हार हुई “
चमन में गुल खिला ,
खुशियों की बौछार हुई ।
नया दौर चला जब ,
धर्म की हार हुई ।
पति-पत्नी के झगड़े में ,
बेटे-बेटियां भी शिकार हुई ।
नासमझी में देखो ,
धर्म की हार हुई ।
प्रेम – प्रेमिका की राह में ,
दोनों परिवारों में मार हुई ।
झूठी शान के खातिर ,
धर्म की हार हुई ।
गुरु – चेले के रिश्ते में ,
विविधता प्रधान हुई ।
धैर्य – सय्यम के चक्कर में ,
धर्म की हार हुई ।
वाद – विवाद के चक्कर में ,
बड़े – छोटे की लिहाज़ ना हुई ।
प्रथम प्रशन्सा के खातिर ,
धर्म की हार हुई ।
धन – दौलत के कारण ,
संतानों में युद्ध हर बार हुई ।
संपत्ति के लालच में ,
धर्म की हार हुई ।
धर्म को धारण करना था ,
हर कोशिश नाकाम हुई ।
आधुनिकता के दौर में ,
धर्म की हार हुई ।
( यहां धर्म का अर्थ है ” धारण करना ” । जब मनुष्य किसी भी धर्म को चाहे वो पतिधर्म , पत्नीधर्म , मातृधर्म , पितृधर्म , या इस्लाम धर्म , ईसाई धर्म , सिख धर्म आदि हो उसे धर्म के प्रति पूर्ण निष्टा से कर्म करना ही धर्म है ।
धर्म के अनुसार ना हो कर्म तो वह मनुष्य प्राकृतिक रुप से स्वयं ही उस धर्म से अलग हो जाता है । अथार्त उस धर्म के भोग से वंचित रहना पड़ता है तथा उसका जबावदेह वह व्यक्ति स्वयं होता है । )
? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️
नई दिल्ली