धर्म की सीख
अपनी मर्जी किस पर थोपु धर्म की यही दुहाई है।
राह राह पर राख पड़े हैं किसने आग लगाई है?
मन के भीतर झांक जरा तू इनमें भी परछाई है।
लुट-खसोट में सब है, खबरों में कहाँ सच्चाई है।
तुमने किसको समझाया है, कैसी बात बताई है?
हर घर में तो यहाँ बेबसी है और दर्द की खाई है।
मन करता है छोड़ दूं सब कुछ, जितनी मेरी कमाई है।
खेल रहा है जात-पात पर, कितनी अजब लड़ाई है।
हिन्दू वही है मुस्लिम वही है, वही सिख व ईसाई है।
बंदे हैं सब उस रब के ही, पर जाने कैसी लड़ाई है?
धर्म वही जो मेल कराये, किसने नफरत सिखाई है?
बाहर फेको उस कचड़े को, जिसने गंध फैलाई है।
इंसा है हम खुदा नही है, धर्म की यही पढ़ाई है।
लौटो फिर से वहीं जहाँ पर, ना ही कोई जुदाई है।
सब एक हो सब नेक हो, जहाँ सभी पर भाई है।
छोड़ो बैर अब रहने भी दो, जो भी बची लड़ाई है।
बाँट लेंगे हम आधा-आधा, जितनी भी पूण्य कमाई है।
नष्ट करो बंदूक-मिसाइल, जिसने गाज गिराई है।
मिलकर सब अब एक हो जाओ दुनियाँ की यही भलाई है।
मिलकर सब अब एक हो जाओ दुनियाँ की यही भलाई है।
धन्यवाद !
अमित कुमार प्रसाद, आसनसोल( प. बंगाल)