धर्म की कुटिल व्याख्या
संवाद के द्वार
कब खोलोगे.?
जब सब कुछ
धर्म से तौलोगे ।
वर्तमान को
विज्ञानं से कब जोड़ोगे.?
जब हर विचार पर
आस्था के रोड़े छोड़ोगे ।
क्या ,क्यूँ , कैसे
से धर्म समाज को
कब तौलोगे.?
जब हर बात पर
ईस्वर अल्लाह बोलोगे।
संवाद जरूरी है
तकरार जरूरी है
हर विचार पर प्रश्न
प्रश्न का उत्तर जरूरी है।
अपने को कितना
सिमित कर छोड़ोगे.?
जब हर बात पर
नियति नियति बोलोगे।
डर के साए में
जीवन को कितना भोगोगे.?
जब कौने में बैठ
भाग्य को कुंठित सोचोगे ।
कर्म की महत्ता
कब समझोगे.?
जब जीत हार पर
भाग्य विधाता सोचोगे।
प्रकाश बन
अंधकार कब दूर भागाओगे.?
जब हर जगह मंदिर,मस्जिद,चर्च
पर मानवता शर्मसार करोगे।
विज्ञानं के दर्पण से
इंसानी सूरत कब देखोगे.?
जब ऊंच-नीच ,धर्म-जाति
को सास्वत विभेद मानोगे ।