धर्म का कारोबार
“सहनशीलता टूट रही है ,बदल रही है परिभाषा !
अँधा हो रहा समाज ,ख़त्म हो गयी मानवता !
अब मुँह से कोई नई लड़ता,सीधे तलवार निकलता है !
हिम्मत से लड़ने वालो का सर, धरती पे जा मिलता है !
बंट जाती है अब सहानुभूति भी ,धर्म जाति के नामो पर !
अवार्ड भी वापस होते हैं पर ,कुछ चुंनिंदा विषयों पर !
अत्याचार की सीमा भी अब , धर्म विशेष तक सीमित है !
न्याय के बदले व्यापार मिलेगा ,इतना तो ये निश्चित है !
समाचार के पन्ने भी जहाँ , भेद भाव दिखलाते हों !
कलम की स्याही भी जहाँ ,धर्म जति में डूबी हो !
समुदाय विशेष का हुआ गलत, तो कवर पेज बन जाता है !
ध्रुव और ट्विंकल का किस्सा तो ,कोनो में जगह पाता है !
धिक्कार है ऐसे समाज ,और धर्म के डेकेदारों पे !
जो खुला विरोध न कर पाए ,ऐसे दोमुहे किरदारों पे !
पहले निर्भया ,फिर आसिफा ,और आज ट्विंकल की बारी थी !
न्याय का ऐसा रूप देखकर ,कर लो तैयारी अपनों की !
हृदय द्रवित हो उठता है ,ऐसे वीभत्स अत्याचारों पे!
न जाने कितने आघात किये हैं ,इन नन्ही सी जानों पे !
एक रावण से टकराने तुम, स्वयं आगये धरती पे !
लुप्त कहाँ हो बैठे तुम ,जब इतने रावण हैं धरती पे!
बेच दिया है तुमको भी हमने ,मंदिर मस्जिद से भरी दुकानों में !
बांध दिया है तुमको भी हमने ,अपनी न्याय व्यवस्था में !
अश्रुपूर्ण निश्चित तुम होंगे ,ऐसी विकट अवस्था में !
मानव से हम गिद्ध बन चुके ,जाति धर्म के चक्कर में !
अब न राम राज्य है संभव ,ना ही गीता का सार यहाँ !
केवल शिव का तांडव ही ,कर सकता है उपकार यहाँ !
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