धर्म आधारित राजनीति
जहान् की जहां से भी सुनी,
हताशा ही हरदम हाथ लगी,
धंधा धेले का नहीं,
चार माणस सब अलबाधी,
कमाई धेले की नहीं,
एक हजार का सिलेंडर,
सब्सिडी एकदम टूटी,
दूध सत्तर के भाव,
निकलता नहीं, घी.
एक आध माशा,
घी तेल खुद कर रहे तमाशा.
गेहूं तै तूड़ी महंगी बिक रही.
ऐसा हुआ पहली बार.
पशु गेहूं, आदमी तूड़ी खाने
खातर हो रहा तैयार ,
पहली बार वित्त मंत्रालय ने.
परहेज़ की लिस्ट तैयार की,
शनि पर शनि, राहू, केतू की
नजर नींबू से इस बार चढ़ी.
हंस महेन्द्र सिंह