धर्मनिरपेक्ष भारत
न कोई गाँधी न कोई पटेल है अब सब कुर्सी के पुजारी है ।
चोर, उचक्के, गुंडे, मवाली……. देश के सत्ताधारी है ।।
क्या कभी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भी दंगे फसाद होते है ।
मान गए उस्ताद आपकी क्या खूब अदाकारी है ।।
बस एक कुर्सी की खातिर धर्म की सियासत जारी है ।।
खैर……आपका इतना कहना ही खुद में कमाल था ।
ये सरकार हमारी है, वो सरकार तुम्हारी है ।।
जला कर सब को राख न कर दे भड़की धर्म की जो चिंगारी है ।
उनके भरोसे देश न छोड़ो ,जिन्हें कुर्सीयां प्यारी है ।
बस उन्हें मुनाफ़े से मतलब है ,अरे वो तो एक व्यापारी है ।
हिफाज़त संविधान की किस के भरोसे छोड़े हम
धर्म-जात के पन्नो को उखाड़ फेकने की अब हमारी जिम्मेदारी है।।
शहीदों के सपनो पर पानी न फेरो तुम
उस भेदभाव को खत्म करो जो एकता पर भारी है ।।
बात बात पर देशभक्ति क्यो टटोलते हो मुझमे तुम।
अरे यही दफन हुए है हम ये सरजमीं हमारी है ।।
वक़्त आने पर बताएंगे हम देशभक्ति का मतलब।
बताएंगे कितनी मुहहबत है मुझमे कितनी खुद्दारी है।
ये वतन हमारा है ,ये सरजमीं हमारी है।
:-आकिब जमील “कैश”