‘धरा’
तरल शीतल सरस हूँ,
शांत गतिमान पारदर्शी हूँ।
ठोस कठोर पाषाण हूँ,
हाँ अवश्य निष्प्राण हूँ।
तुच्छ सा कण स्फुरण हूँ,
जीवन संग मरण हूँ।
भुवन जगत संसार हूँ,
हर जीव का आधार हूँ।
जननी वसुधा अंक हूँ,
पालक भिक्षुक रंक हूँ।
मैं ही भुवि पृथ्वी सहचरी,
संपूर्ण सृष्टि मुझ में भरी।।