धरा स्वर्ण होइ जाय
नीली छतरी वाला
नीली छतरीवाला करता
है सभी की रक्षा
हाँ बीच बीच में बेशक ही
लेता वह सबकी परीक्षा
होना नहीं निराश तुम
ना समझे मकरंद
परखा हीरा जाय नहीं
कभी कबाड़ी संग।
करता अभय सभी को
नीली छतरी वाला
डरो नहीं तू कभि किसी से
उसका खेल निराला।
खुद को तराशों इस कदर
जैसे खिला पलाश
पाने वाला खुश रहे
खोनेवाला निराश।
अन्धकार को समझा क्या
बस है प्रकाश का लोप
अंत है जीवन का बस सुंदर
इक पावन सा मोक्ष।
बल से बड़ी विनम्रता
क्षमा बड़ा है तर्क से
लुप्त होत सदग्रंध सब
अनायास ही कुतर्क से।
सब कुछ सुंदर छवि नहीं
है सादगी इक रत्न
जलकुम्भी से भरा सरोवर
इक उपवन का भ्रम।
केवल क्षमा विकल्प नहीं
जो दिया भयंकर वार
निकली कील दीवाल से
छिद्र चिढ़ाता धा।
संगत की महिमा बड़ी
होत होत बड़ काज
निर्मेश सूर्य की रोशनी
धरा स्वर्ण होइ जाय।