धरा का तु श्रृंगार किया है रे !
तू धीर, वीर ,गंभीर सदा
जीवन को उच्च जिया है रे,
तु दुःखियों को सींचित् कर श्रुति स्नेह से
कैसा ,ह्रदय रक्षण किया है रे !
तु भाग्य विधाता से हरदम
उन्नत ,मधुर विचार पाया है रे,
तु वीरों के अन्तःस्थल को,
प्रफुल्लित कर प्यार भरा है रे !
तु वंचितों,पददलितों के हित,
सदा कष्टों का भार ढहा है रे,
तु स्वाभिमानी,मातृभूमी हित,
गर्दन पर तलवार सहा है रे !
तु पराधिनता में जगत्-जननी को,
अहा! कैसा धार दिया है रे;
लाखों मस्तक कर अर्पित चरणों में,
अद्भुद् श्रृंगार किया है रे !
अद्भुद् श्रृंगार किया है रे !
अखंड भारत अमर रहे !
©
कवि आलोक पाण्डेय
(वाराणसी)