धरती: सायली छन्द
धरती
अपनी माता
आश्रय देती सबको
सूर्यधूप छाँव
हरियाली।
माता
जैसी सहती
कुकृत्य हमारे जब
मिलाते हम
विष।
खोदना
जोतना जलाना
सब सहकर भी
अन्न~ देती
सबको।
भार
सहती बहुत
वृक्ष सरवर गृह
मन~ मैल
सबका।
देती
समय समय
अनेक ऋतुएं बादल
सुख ~देती
सौहार्द।
स्वच्छ
वायु जल
मिले हम सबको
जब करेंगे
सहयोग।
धरती
यह ~तब
माता बनी रहेगी
कम~ होवे
वाचाल।