धरती मेरी स्वर्ग
अम्बर से उतरी अमृत धारा
प्रकृति का खेल निराला
आनंदित वसुधा,पेड -पौधे सब
जीव जन्तु हर्ष विभोर है अब
पहाड पर्वत स्वच्छ हुए है
स्नान से मन भीग गये है
नदिया कर रही अठखेली
सागर मिलने ठान चली है
नम है सारे नीड ठिकाने
गम से परे फिर भी अफसाने
मोर चिरैया गाए तराने
मन मीत पुकार रही बुलाने
मेघ गरज कर लगे डराने
प्रभाकर को लगे छुपाने
तडित रह रह दिखावे जोर
ताकत अपनी चली दिखाने
राज अद्भुत छुपा यह कैसा
चक्कर मौसम सदा ईक जैसा
क्या खूब रचा है सृष्टि रचैया
इह लोक क्या है स्वर्ग के जैसा