*धरती के सागर चरण, गिरि हैं शीश समान (कुंडलिया)*
धरती के सागर चरण, गिरि हैं शीश समान (कुंडलिया)
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धरती के सागर चरण ,गिरि हैं शीश समान
नदियाँ झरने खुशनुमा ,इसकी देह महान
इसकी देह महान ,हिमालय गिरि का राजा
लगता जैसे उच्च , स्वर्ग का यह दरवाजा
कहते रवि कविराय ,झील शोभा मन-हरती
पाकर परम प्रसन्न , व्योम मेघों को धरती
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गिरि = पहाड़
व्योम = आकाश
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451