#धरती के देवता
#धरती के देवता
#कविता (व्यंग्य वाण)
धरती के भगवान अब
पत्र पुष्प नहीं चाहते
चढोत्री के रूप में
छिपकर रिश्वत मांगते
नेता हो चाहे अधिकारी
लिपकीय सेवक कर्मचारी
भगवान स्वयं को मानते
काम करने कराने का
सुविधा शुल्क सब चाहते
शासन से जो मिलता
उससे तो घर चलता
मौज मस्ती करने हित
ऊपरी धन्धा फलता
मुट्ठी गरम होते ही
नियमों में शिथिलता
वरना नहीं मिलते सबूत
जिनमें छिपी सफलता
भगवान नहीं तो क्या कहें
निर्दोष को दोषी मानते
पा जाते यदि चढोत्री
दोष सभी के काटते
प्रत्यक्ष देवता ये धरती के
पहचान पहचान कर
रेवड़ी लड्डू बांटते ।
राजेश कौरव सुमित्र