धरती कहें पुकार के
अल्फाज तेरे सुन कर,
अरमान तेरे देख कर
लगता नहीं तुम्हें चिंता है
डगमग व्यवस्था देखकर.
आंखें तेरी छीन कर.
यांत्रिक तुम्हें बना कर,
शब्दों के चक्रव्यूह रच कर,
उमड़ पडते है आकाश में बादल
शोर होता है बहुत,
तड़कती है बिजली,
प्यासी है धरती
एक बिलांद पानी की
ये कैसी बरसात हैं
लहूलुहान लथपथ अश्रु धार
बह रही मेरे ही संतान की,
आंचल धरा ने अपना फैलाया,
सुरक्षा में मेरे पहलवान की,
हवा में घोला गया जहर,
जिंदा रहने की बात आई,
हरियाली न आसपास पाई,
झगडे की कोई बात न पाई,
धर्म ने खून की है खाट बिछाई.
देख सको देखो अपनी परछाई.
दुनिया से हुई गायब धैर्य समाई,
मानस कह मैं बहुत करी कमाई,
छल कपट ने अपनी संख्या बढाई
छोड़ पढ़ाई करने चले आज भलाई
लाठी डंडे पत्थर आत्म कथा रचाई
होगा तेरा कल्याण तुझही से भाई