धरती और मानव
भूमि, धरती, भू, वसुंधरा,
हैं ये कितने प्यारे नाम |
रंग बिरंगी, फल फूलों से भरी,
धरती हमारी हरी-भरी |
धरती ने किए हम पर,
कितने सारे उपकार,
हमने बदले में क्या दिया ?
छीना उसका संसार |
पर अब मानवजाति जागी,
ग्लानि है उसे अपने पर |
हमने अब ये वादा किया,
धरती को रखेंगे हरा-भरा |
अब ना वृक्षों को काटेंगे,
नदियों को स्वच्छ रखेंगे |
लौटा देंगे तेरा रंग रूप,
चाहे हो कितनी बारिश और धूप |