धमकी तुमने दे डाली
धमकी
—————————————-
क्या कसूर था उन मेहनती लोगों का
बस यही कि तुम्हारी नहीं सुनी,
तुम कोई राजनेता तो नहीं थे
धमकी तुमने दे डाली उनको
बोलो ! क्या मिला तुम्हें,
रात में भागने को मजबूर हो गए
वे मेहनती लोग ।
क्यों पता है तुम्हें ?
अपने बच्चों और पत्नी की
चिंता का सवाल जो था।
बार-बार सोचा उन लोगों ने
अपने अधीर हो उठे मन में
जमाना खराब है, साहब
हमें कुछ हो गया तो अपने
घर वालों का कौन सहारा ?
निश्चय अब कर लिया था
रात अंधेरे में भेष धर लिया था
काऊ को जवाब नहीं,
देना था उन्हे !
बस जल्दी निकल जाना था।
क्यों ?
सता रहा था डर यहीं कि
रोज-रोज की धमकी
बाबू, सही हो गई तो
क्या होगा ?
इरादा पक्का था,
अब चलो भईया अपने
गांव भाग चलें
न हम रहेंगे , यहां न सुनें
रोज रोज की धमकी।
बस,रात अंधेरे चल दिया
पता न चला किसी को
अचानक वे मेहनती लोग
कहां ? गायब हो गए।