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1 Aug 2016 · 1 min read

धन

धन की खातिर आदमी, करता क्या क्या काम।
श्रम बिन धन कहुँ कब मिले, कैसे हो आराम।।

कैसे हो आराम, बड़ी है आपाधापी।
धन ने जग में यार, बनाये हैं कुछ पापी।।

कह विवेक कविराय, भला बैठूं किस आसन।
नही चैन आराम, कमाऊं कैसे मै धन।

विवेक प्रजापति ‘विवेक’

2 Comments · 564 Views
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