*धन ही बलवान *
धन होय,
मानव फुदकता।
धन् न होय,
बिल्ली सा दुवकता,
कम करें खर्चा,
होवे चाहू और चर्चा,
कंजूसी की मिले उपाधि।
धन अभाव में जिंदगी,
बिन पतवार नाव ।।
बहती जावत जल में,
दर्शक देखे मझधार में ।
हर समस्या समाधान,
जब गांठ में धन।
धन के बल आसमां के तारे
दिन में गिनते।
रवि ‘निशा ना देखते
धन में घमंड से चूर।
पूत कपूत तो का धन संचय।
पूत सपूत तो का धन संचय।।
* नारायण अहिरवार*
अंशु कवि