*धन का नशा रूप का जादू, हुई शाम ढल जाता है (हिंदी गजल)*
धन का नशा रूप का जादू, हुई शाम ढल जाता है (हिंदी गजल)
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1)
धन का नशा रूप का जादू, हुई शाम ढल जाता है
भाग्यवान का भाग्य एक दिन, खुद को ही छल जाता है
2)
कहॉं लोकप्रिय हुआ खुरदुरा, खरा लिए जो अंतर्मन
खोटा सिक्का चिकना-चुपड़ा, कई बार चल जाता है
3)
जीवित रहता है जग-नायक, भले परिस्थिति टेढ़ी हो
सब ने देखा है यह कान्हा, गोकुल में पल जाता है
4)
कभी-कभी कुछ खास समय दिन, केवल भारी होता है
निकल गया वह क्षण तो खतरा, जड़ से ही टल जाता है
5)
सदा बचो धन के लालच से, बुरे काम को मत करना
पुण्य क्षीण कर अक्सर सारे, यह कालिख मल जाता है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451