धन्य-धन्य जो धरणी का भार हटाते हैं !
दग्ध ज्वालों को झेल-झेल ,
विषमय जीवन में खेल-खेल ;
तप-त्याग-तेज, प्रचण्ड फैलाकर,
दस्यु दल में हा-हाकार उठाकर !
अरि का मस्तक कर विदीर्ण ,
विद्युत गरल पी-कर जो आते हैं ;
हे धीर ! तूझको हम इसलिए –
हृदयों में अत्यंत सन्निकट पाते हैं ।
फैले तन का ताप प्रलयघन ,
विराट प्रचण्ड शौर्य हुंकारों से ,
चमकती तीव्र अग्नि-शिखा ब्रह्मांड में ,
पुण्य रश्मियों की धारों से !
निस्तब्धता भरी सहमी कालों में ,
लेकर अंगार जो आते हैं ;
है नमन वीर , है धन्य धीर ;
जो धरणी का भार हटाते हैं ।
✍? आलोक पाण्डेय