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22 Oct 2022 · 1 min read

धन्यवाद

एक लंबी जिंदगी को
थोड़ा भी नहीं
जी पाया।
चाहता तो था।
बचपन
लड़कपन
युवापन
बुढ़ापा
मृत्यु।
सब मिले रास्ते में,
दुश्मन सा।
मैं तो मित्रवत था
इनके साथ भी।
इसलिए वे हँसते रहे मेरे
ज्ञान पर।
इसलिए कहा मेरे जीवन को
अस्वच्छ जीवन।
हाँ
पाया
धुंधलका को माँ सा
गोधूलि को पिता सा
अंधेरे को स्वप्न सा
प्रतीक्षा को भविष्य सा
सूर्यास्त को जीवन सा।
आशाएँ मटमैला सा।
विश्वास अधेला सा। (पैसे का आधा)
प्रयास थका सा।
मजदूरी मजबूरी सा।
संघर्ष पराजित सा।
तन तिरस्कृत सा
और
मन विस्मृत सा।
अन्तत:
नहीं जीने जैसा
मैंने भी जी है जिंदगी।
धन्यवाद साम्यवाद।
———————————-
अरुण कुमार प्रसाद 22/10/22

Language: Hindi
165 Views
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