धन्यवाद ज्ञापन
हास्य
धन्यवाद ज्ञापन
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अभी अभी एक साया जाने कहां से
टहलते हुए मेरे पास आकर बोला….
हे प्रभु! मुझे पता चला है कि आज
आपका शासकीय जन्मदिन है
इस उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी भी हो रही है
तो हे पूज्यवर मेरा अनुरोध है
बस आप इसे स्वीकार करो,
नाम में भला क्या रखा है
मेरा नाम पर्दे के पीछे छिपा लो।
नहीं तो आज की गोष्ठी में
उथल पुथल मच जायेगा,
आभार धन्यवाद लेने के लिए
फिर यहां कोई नहीं रहेगा।
सब पटल छोड़ भाग जायेंगे
आपको देने के लिए लाये होंगे
बधाइयां, शुभकामनाएं,उपहार, गुलदस्ता
वापसी में अपने साथ लिए जाएंगे।
पर मेरी बड़ी इच्छा है कि
मैं अनाम बनकर ही सही
इस काव्य गोष्ठी का हिस्सा बनूं
सबको जी भर कर सूनूं।
मुझे कवि बनने का शौक नहीं
बस कविता सुनने का शौक है
मुख्य अतिथि, अध्यक्ष से मुझे कोई मतलब नहीं
बस धन्यवाद ज्ञापन का भरपूर लोभ है।
मैं चाहता हूं आपकी जगह
मैं सबका धन्यवाद ज्ञापन करुं,
आपके जन्मदिन पर मैं भी
अपने हुनर का प्रदर्शन करूं।
अब तक नहीं किया तो क्या हुआ
आपके जन्मदिन विशेष पर
कम से कम श्री गणेश तो करूं।
आप सबकी बधाइयां शुभकामनाएं संभालिए
आपकी जगह मैं धन्यवाद ज्ञापन कर दूंगा।
जन्मदिन पर मेरा यह अनुरोध
यदि आप स्वीकार कर लेंगे
तो मुझ पर आपका बड़ा एहसान मानूंगा,
विश्वास कीजिए अपना नाम तो
मेरा नाम कोई जान ही नहीं पायेगा
क्योंकि आपकिसी को बताएंगे नहीं
और मैं भी नहीं बताऊंगा
खुशी के मौके पर अव्यवस्था
बिल्कुल नहीं फैलाऊंगा।
जन्मदिन की इस काव्य गोष्ठी को
नया आयाम दे जाऊंगा,
अंत में आपका आशीर्वाद लेकर
सुनी हुई कविताओं की पंक्तियां गुनगुनाते हुए
कार्यक्रम की संपन्नता के साथ ही
चुपचाप वापस लौट जाऊंगा,
फिर अगली काव्य गोष्ठी में
बिना बुलाए हाजिर हो जाऊंगा।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित