*धन्यवाद : कविवर भारत भूषण जी तथा श्याम सनेही लाल शर्मा जी*
धन्यवाद : कविवर भारत भूषण जी तथा श्याम सनेही लाल शर्मा जी
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मार्च 1990 में मेरी पुस्तक “रवि की कहानियाँँ “भाग (1) प्रकाशित हुई। इस कहानी संग्रह को मैंने डाक से मेरठ निवासी प्रसिद्ध कवि श्री भारत भूषण जी को भेजा था । भारत भूषण जी का निकट का संबंध मेरे ससुर साहब स्व. श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त जी से था ,जो रामपुर से “सहकारी युग “हिंदी साप्ताहिक निकालते थे। गर्मियों में रामपुर नुमाइश कवि सम्मेलन में जब भारत भूषण जी आए और महेंद्र जी के घर पर पधारे, तब वह अपने साथ दो पत्र लाए थे । महेंद्र जी के सामने उन्होंने दोनों पत्र मुझे सौंपे तथा महेंद्र जी से कहा ” एक पत्र में तो पुस्तक की समीक्षा है तथा दूसरे पत्र में मैंने पुस्तक को पढ़ने के बाद कुछ शब्दों में गलतियाँ पाने पर उनका सुधार किया है ।अभी रवि की उम्र कम है । बाद में शब्दों की यह गलतियाँ लेखन में स्थाई हो जाती हैं । ”
मैंने दोनों पत्रों को लेकर रख लिया। वास्तव में समीक्षा-पत्र की जो कीमत थी, उससे ज्यादा बेशकीमती वह पत्र था जिसमें भारत भूषण जी ने शब्दों की भाषागत त्रुटियों की ओर मेरा ध्यान दिलाया था ।सभी लेखक कुछ खास शब्दों को बार-बार दोहराते हैं तथा त्रुटियाँ होने पर वह त्रुटियाँ भी बार-बार दोहराई जाती हैं। केवल माता पिता और गुरु ही गलतियों को सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं । वह इस बात की भी चिंता नहीं करते कि इससे उनके संबंध खराब हो जाएंगे । किसी से ऐसी आत्मीयता बहुत सौभाग्य से ही प्राप्त होती है ।
1990 के बाद 2019 में मेरा संपर्क व्हाट्सएप साहित्यिक समूह “तूलिका बहुविधा मंच “से हुआ जहाँ एक समीक्षक श्री श्याम सनेही लाल शर्मा जी कुछ ऐसी ही आत्मीयता से ओतप्रोत रहे । आपने बिना किसी घमंड के लेखकों की भाषागत त्रुटियों की ओर उनका ध्यान दिलाया । विशेष रुप से बिंदु और चंद्रबिंदु के फर्क को समझाया तथा रचनाओं में छोटी- सी गलती को भी भाषा के तौर पर सुधारने का काम आपने अपने हाथ में लिया । इससे मुझे विशेष रूप से बहुत लाभ हुआ तथा मेरी भाषा अनेक स्तरों पर सुधरी । मैं निश्चित रूप से आपका बहुत आभारी हूँ। अन्य लेखकों की रचनाओं में जो सुधार आप बताते हैं ,मैं उनको भी पढ़ता हूँ तथा इस प्रकार शब्दों को सही स्वरूप में कैसे लिखा जाना चाहिए, इसका ज्ञान धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।
वास्तव में भाषा का संबंध प्राइमरी शिक्षा से रहता है । उसके बाद ऊँची कक्षाओं में जाकर भाषा के सुधार की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है । जब तक टोका न जाए, सुधार नहीं होता । मुझे श्याम सनेही लाल शर्मा जी की प्रशंसा भी प्राप्त हुई है, यह भी मेरा सौभाग्य है। लेकिन प्रशंसा से बढ़कर मैं उनका स्मरण सुधार की दृष्टि से जो आत्मीयता उन्होंने भारत भूषण जी के समान प्रकट की है ,इस नाते ज्यादा कर रहा हूँ।
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*रवि प्रकाश,
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451*