धनुष भंग पर परशुराम का क्रोध
सार छन्द—
प्रसंग-शिवधनुष भंग पर परशुराम का क्रोध
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राघव ने लाघव पल में ही,धनुष उठाया कर में।
प्रत्यंचा को खींचा ज्यों ही,गूॅंजी ध्वनि अम्बर में।।
सुन कठोर ध्वनि धनुष भंग का,परशुराम गुस्साए।
जनक सभा में क्रोधित मुद्रा,फरसा लेकर धाए।।१।।
कौन काल को दिया निमंत्रण,मानव आगे आए।
शिव के धनु को भंग किया क्यों,यह मुझसे बतलाए।।
मेरे हाथों उसे मृत्यु का,ऐसा दण्ड मिलेगा।
क्षत्रिय कॉंपेंगे धरती पर,यह बह्माण्ड हिलेगा।।२।।
कुपित वचन सुन परशुराम का,दानव मन मुस्काए।
यहाॅं अन्त अब हुआ राम का,सोचे नैन झुकाए।।
इतने में आ लखन लाल ने,नमक जले पर डाला।
क्रोध बढ़ा ऋषि का अतिशय तब,लगे धधकती ज्वाला।।३।।
उन्होंने निज क्रोध की महिमा,सबको सुना डराया।
क्षत्रिय कुल को मारा कैसे,कैसे उन्हें हराया।।
किया निवेदन राघव ने जब ,ऋषि ने हरि पहचाना।
शान्त हुए आशीष दिए तब ,हुआ वहाॅं से जाना ।।४।।
**माया शर्मा,पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)**