धनक कर सात रंग
धनक के सात रंग।
रहा करते थे गाव में,
शहरों के बनने से पहले।
मन्जिल तलासते,
कदमो की बाढ़
गाँव से शहर आती।
रंग भी दाखिल हुए शहर मै,
जिंदगी की रेहड़ी मे
बेजान पत्थरो की तरह।
लदे चेहरों से बेजार
रंगो को पता ही न चला,
चुपके से दाखिल हो गया
इनके भीतर शहर भी।
शहर का इतिहास लिखती है,
ये इबारत शब्दों में ढलकर।
रंगो के जरिये केनवास पर,
टाकदेती है सिटिसकेप में शहर।
मुख्य विषय बनते कूची का
कला की गहराई मे उतरने पर,
नये पुराने शहर चारो और
नजर आते है फैले।
अवधारणा नई हो
परन्तु शैली है बहुत पुरानी।।