*”धधक रही हृदय में ज्वाला”*
“धधक रही हृदय में ज्वाला”
अनगिनत सवालों से जूझते हुए,
अंतर्मन में धधक रही ये ज्वाला।
ओ मानव निर्लज्ज , बेखबर प्रकृति से क्यों करता खिलवाड़ ,
यही तो है जीवन का रखवाला।
पृथ्वी ,जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश ,
इन पांच तत्व के योग से ही अदभुत जगत ये विशाला।
दिव्य दृष्टि से निहार ले प्राणी प्रकृति की छटा को,
पावन धरा अनुपम सौन्दर्य है निराला।
सूर्य ,चंद्र ,तारे धरती ,अंबर ,अनगिनत आभामंडल की छाया से ही खेल निराला।
प्रदूषण फैलाता ,उजड़ा चमन प्रकृति नष्ट कर क्षतिग्रस्त क्यों कर डाला।
अब तो मानव संभल जरा सोच,धरती पर क्यों धधक उठी है ये ज्वाला।
मानव घर में कैद हो ,सीमित दायरों में सिमट गया क्यों ,
पर्यावरण संरक्षण सुरक्षा व्यवस्था सम्हाल लो,
वरना महाप्रलय कोहराम मचेगा,तो कोई ना इसे पाएगा टाला।
शशिकला व्यास शिल्पी✍️