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26 May 2017 · 1 min read

धड़कन

खुद की धड़कन
नही सुन पाता हु
अब सीने में धड़कता ही
नही ह्रदय तो कही और है
खुद को आइने के सामने
रख कर उसको ढूढता हूँ
अगले ही क्षण टूट कर
बिखर जाता हू
उसकी आवाज तक
नही सुनाई देती
कोई आवरण चढ़ाया
है समय ने कानो पर
महसूस करता हुँ तो सिर्फ एक सुखद
अहसास इस प्रेम को चाहिए क्या
समर्पण सिर्फ समर्पण
जितना आसान है
शब्दो उससे
कई ज्यादा
वास्तविकता में कठिन
क्षणिक आवेशित भावनाओ
के सामने धरी रह जाती है
अनुभव से उपजी समझ

Language: Hindi
214 Views
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