गंदा धंधा
दुनिया का सबसे पवित्र व्यवसाय कौन सा है, यदि ये सवाल किसी से पूछा जाए तो बिना किसी हिचक के जबाब मिलेगा, चिकित्सा व्यवसाय. एक डॉक्टर की अहमियत भगवान् से कम नहीं होती. कोई भी आस्तिक व्यक्ति भगवान् पर जितनी श्रद्धा, विश्वास और भरोसा रखता है उससे यदि अधिक नहीं तो कम भी नहीं होता है एक मरीज और उसके परिजनों का अपने डॉक्टर पर भरोसा. ये भरोसा कुछ दिनों से टूटता नजर आ रहा है. सबको पता है की इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ एक कारण है और वो है दौलत की हवस. सम्पन्नता की अंधी दौड़. आज ये सर्वविदित है कि कुछ एक अपवाद को छोड़कर प्रत्येक लैब, इमेजिंग सेंटर, दवा सप्लायर कम्पनियां एक मोटा कमीशन डॉक्टर को पहुंचाते हैं. प्राइवेट नर्सिंग होम एक उद्योग की तरह चल रहे हैं और सिर्फ एक मकसद के साथ कि कैसे मरीज की जेब से अधिक से अधिक उगाही की जाए जब तक कि उसकी और उसके परिजनों की ताकत है. यहाँ तक भी गनीमत थी. चिकित्सा सेवा की अवधारणा जब से सेवा से चिकित्सा व्यवसाय यानी धंधे में परिवर्तित हुई तब से उत्तरोत्तर पतन की और अग्रसर है. सर्वविदित निठारी कांड की पृष्ठभूमि में मानव अंगों की तस्करी ही थी. अपने व्यवसाय को अब डॉक्टर्स सीरियसली भी नहीं ले रहे हैं. एक घटना में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक प्लास्टिक सर्जन ने एक नवजात के पेट का ओपेरेसन कर दिया और वह भी किसी दूसरे बच्चे के धोखे. एक ऐसी क्लिनिक जो सिर्फ प्लास्टिक सर्जरी के लिए पंजीकृत था, वहां एक डॉक्टर चंद सिक्कों की खातिर एक मानव जिन्दगी से खेल रहा था. अगर बच्चा बदलता नहीं तो ये राज भी राज ही रह जाता. एक दूसरी घटना में एक गलत ग्रुप का खून चदाकर जीवन की बलि चढ़ा दी जाती है. ये उदाहरण और घटनाएँ भी पूरे देश में यदा-कदा सुनायी देती रहतीं हैं. नवी मुंबई में एक प्राइवेट हॉस्पिटल के डॉक्टर ने आई.सी.यू. में भर्ती मरीज, जो कि अर्ध-मूर्छित अवस्था में थी, उसकी इस अवस्था का लाभ उठाकर वलात्कार किया. मरीज अपनी अवस्था के कारण शोर भी न मचा सकी और न ही अपनी मदद की गुहार कर सकी. होश में आने पर जब उसने अपने पति को घटना के बारे में बताया तो डॉक्टर की कारगुजारी जग-जाहिर हो सकी और डॉक्टर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की जा सकी. कोविड की आपात स्थिति के दौरान भी कुछ घटनाएँ बहुत ही शर्मनाक थीं, जिनको हर किसी ने भुगता या अपने किसी नजदीकी से सुना. इन सब घटनाओं का निष्कर्ष यह है कि इस देवतुल्य व्यवसाय का दिनों-दिन पतन होता जा रहा है और लालच का राछस इसे नरकलोक में धकेल रहा है. भ्रष्टाचार का भूत इस व्यवसाय के सर पर बुरी तरह सवार है. कैसे भी भ्रष्टाचार, भ्रष्ट आचरण को समाप्त करने का सार्थक उपाय सिर्फ दृढ इच्छाशक्ति में छिपा है. चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोग ही व्यवसाय की गरिमा बनाए रख सकते हैं. बस जरूरत है तो इस बात की कि बिना किसी होड़ या लालच के व्यवसाय की गरिमा के अनुरूप अपने आचरण को मेंटेन रखना होगा तथा व्यवसाय के अनुरूप सच्ची मानव सेवा भाव रखने वाले व्यक्तियों को ही इस व्यवसाय को अपनाना चाहिए. डॉक्टरों का चुनाव करने की विधि ऐसी होनी चाहिए की जिससे प्रतिभागी की मानवीय संवेदनाओं का भी आकलन हो सके. पाठ्यक्रम में आवश्यक कठिन समाज सेवा का स्थान होना चाहिए तथा इस प्रकार होना चाहिए कि वो चिकित्सक के आवश्यक गुण समाहित कराने में सक्षम हो. इसके साथ ही अपने व्यवसाय सुलभ गुणों के विपरीत आचरण करने वाले चिकित्सकों के लिए सघन दंड का कानूनी प्रावधान भी होना चाहिए. आईये हम सब दुआ करें कि ईश्वर उन भ्रष्ट चिकत्सकों को सदबुध्धि दे. हमारी आस्था इस व्यवसाय पर जो शेष बची है वो अच्छुण बनी रहे जिससे कि वो धारणा न बन सके जिसमें कोई सच्चा सरल ईमानदार व्यक्ति अपने बच्चों को इस व्यवसाय को भेजनें के बारे में सोचना बंद ना कर दे जैसा कि आज राजनीति के साथ हो गया है. सेवा, सेवा बनी रहे ना कि धंधा.
रहम, त्याग, सेवा का
बाज़ार अब मंदा है
इस शहर से बच निकलो
ये अब नरक का पुलिंदा है.
खून की कीमत आज
पानी से फीकी है,
मेरे शहर के फरिश्तों की
शैतान से माशूकी है.
छोड़ कर सेवा भाव
स्वार्थ में अंधा है,
ये अब गंदा है
क्योंकि अब धंधा है.
@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”