द माउंट मैन: दशरथ मांझी
बिहार के गहलौर में जन्मा था एक व्यक्तित्व महान,
दशरथ मांझी था उसका नाम।
पत्नी की आकस्मिक मौत से,
उठ रहा था जिसके हृदय में सागर का तूफान।
विषम परिस्थिति थी कुछ ऐसी…
फागुनी पहाड़ से गिरकर जीवन से हारी थी,
मांझी ने ले लिया संकल्प –
पर्वत को चुनौती दे डाली…
पर्वत को चीरने की अब बारी थी।
पत्नी की मृत्यु से था वो व्यथित,
अखंड संकल्प था ह्दय में उपस्थित।
प्रेम था इतना शुद्ध,
खड़ा हो गया चट्टान के विरुद्ध।
वह कर्मयोगी था,
दुखों का भोगी था।
साहस था उसमे अपार,
कर दिया अपने वचन को साकार।
सन 1960 से 22 वर्षों तक किया अथक प्रयास,
ना हिम्मत हारी ना टूटने दिया स्वयं का विश्वास।
व्याख्या कर सकूं,
उस धैर्य, समर्पण, प्रेम, विश्वास, हिम्मत, ताकत की…
शब्दकोश नहीं ज्योति के पास।
छैनी हथौड़ा थे उसके औजार,
इस न्याय युद्ध में बनाया था उसने इन्हें हथियार।
हम सभी के लिए है वह प्रेरणा,
दिल में ना जाने कितनी होंगी तब वेदना।
फिर भी ना हार मानी ना झुकाया सर,
तोड़ डाली वह चट्टान…
छैनी हथौड़े से लिख दी अपनी पहचान।
दिल में सुलग रही थी आग,
300 फीट लंबा 30 फीट चौड़ा पहाड़ को तोड़ कर बना दिया मांझी ने मार्ग।
दिल्ली तक पैदल गया की अनोखी न्याय की यात्रा,
जज़्बा था आसमान से ऊंचा सागर से गहरा…
ना थी इस जज्बे की कोई मात्रा।
ताजमहल के स्थान पर आज प्रेम की अमर स्मारक है ये दशरथ मांझी पथ,
पत्नी के वियोग में जिसने पूर्ण की अपनी शपथ।
संपूर्ण भारत में है पथ ये विख्यात,
पुरुषार्थ मांझी का आज है प्रख्यात।
22 साल के समर्पण, धैर्य, और हौसले से हुआ ये प्रसिद्ध,
प्रेम समर्पण कर दिया सिद्ध।
माउंट मैन वो कहलाया,
हमने ऐसा महा मानव पाया।
2007 में कैंसर से लड़ते हुए हो गया वो मृत्यु को प्राप्त,
लेकिन ये शख्सियत रहेगी हमेशा हम सभी के दिल में व्याप्त।
-ज्योति खारी