#द्वेष_लोलुपता_त्याग_हृदय_में, #दीप_जलाओ_मेरे_साथी||
#द्वेष_लोलुपता_त्याग_हृदय_में, #दीप_जलाओ_मेरे_साथी||
________________________________________________
मन भीतर जो तम फैला है, उसे मिटाओ मेरे साथी|
द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में, दीप जलाओ मेरे साथी||
माया है ठगनी ठगती है, शूर्पणखा बन करती है छल|
मिथ्यामय जिज्ञासाओं का, करती उर संचय यह हर पल|
मृषा जनित लिप्सा मानस से, दूर भगाओ मेरे साथी|
द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में, दीप जलाओ मेरे साथी||
उत्कण्ठा अघ से पूरित जो, करती सत्यानाश मनुज का|
स्थापित मनु मन में करती, दुर्गंधित हर भाव दनुज का|
अपकर्मी अभिलाष की अर्थी, आज उठाओ मेरे साथी|
द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में, दीप जलाओ मेरे साथी||
असत पंथ को वर सुयोधन, क्यों बनते हो नाहक तुम|
सत्य – धर्म से बनों युधिष्ठिर, धर्म- ध्वजा संवाहक तुम|
शुद्ध कर्म से पातक उर का, चलो घटाओ मेरे साथी|
द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में, दीप जलाओ मेरे साथी||
द्वार खड़ा सौभाग्य तुम्हारे, करना मत इसका निरादर|
ईश्वर ने जो कार्य है सौंपा, माथ नवा कर उसका आदर|
मोह जनित अँधियार से निज को, परे हटाओ मेरे साथी|
द्वेष लोलुपता त्याग हृदय में, दीप जलाओ मेरे साथी||
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’ (नादान)