द्वंद्व हो
द्वंद्व हो जब अंतर्मन में
किस से दुख बतलाऊ मैं
कभी इधर तो कभी उधर
कब तक मन समझाऊं मैं।।
मन बावरा पल पल डोले
किस खूटे बंधवाऊमैं
अमन चैन से जुड़ा जो धागा
अब कहां से मंगवाऊ मैं।।
मन री पीड़ा मन ही जाने
व्यथा किसे सुनाऊं मैं
अपनो में एक पराया बैठा
किसे विश्वाश दिलाऊं मैं।।
मन को मिले अथक शांति
किस मंदिर में जाऊं मैं
चहुं ओर हो स्याह रात्रि
कैसे जगमग हो जाऊं मैं।।