द्वंद्वात्मक आत्मा
द्वंद्वात्मक आत्मा
अंतर में रावण, राम भी वास,साधु-हैवान, दोनों का वास।।
एक पल शांत, अगले ही क्षण तूफान,मन की दुनिया है अजीबो-गरीब काफिला।।
कभी उड़ान भरता है स्वर्ग की ओर,कभी गिर जाता है पाप की दलदल में घोर।।
ज्ञान की चमक है आँखों में,क्रोध की आग भी दहकती है भीतर ही कहीं।।
प्रेम का सागर है ह्रदय में गहरा,नफरत का जहर भी घुला है उसमें धीरे-धीरे।।
सत्य की राह पर चलने की तम्मना,लेकिन मन मोह-माया में खो जाता है अनजाने।।
यह द्वंद्व ही है जीवन का सार,इसी से बनती है रंगीन जीवन की तस्वीर अपार।।
स्वीकार करो अपने भीतर के रावण और राम को,तभी मिलेगा तुम्हें जीवन का सच्चा आनंद धीरे-धीरे।।
लड़ो अपने अंदर के राक्षसों से,बनो विजयी, बनो अपना ही देवता।।
जीवन है एक अनमोल उपहार,जीयो इसे हर्षोल्लास के साथ, द्वंद्वों को स्वीकार कर।।