“द्रौपदी का चीरहरण”
परिणाम दुर्योधन के अपमान का,
किया पांचाली का चीरहरण ।
दुर्योधन को ना था आभास,
की हो जायेगा कौरवों का विनाश।
पांचाली कछ में कर रही थी श्रृंगार,
दुशाशन लोक लाज भूलकर किया प्रतिकार।
केश पकड़कर के लाया ,सभा हुआ शर्मसार,
पांचाली भी सरल नही ,किया उसने चीत्कार।
दुशाशन ने कहा,अब कौन लाज बचाएगा,
क्या जाने वो कृष्णा के ,कृष्णा दौड़ा आएगा।
थक गया फिर वो सारी को खींच खींच कर हारा था,
हे गोविंद ,हे केशव कहकर पांचाली ने पुकारा था।
केशव ने चीर बढ़ाकर लाज बचाई थी,
कृष्णा के इस माया से ,सभा मे मौन छाई थी।
हाथ जोड़कर खड़ी थी वो,
आंखों में आक्रोश था।
पांडव बचा रहे थे धर्म को,
उन्हें इस अधर्म में भी संतोष था।
जब तक मौन लीन रहेगा समाज,
क्या ऐसे नारी की लूटेगी लाज।
उठो शक्तिरूपा तुम खल सँहार करो,
पौरुषहीन पिशाचों पर वार करो।
सौंदर्य की मूर्ति,ज्वलंत ज्वाला रूप सी,
आर्यावर्त की एकमात्र,प्रज्ञा बन रूप सी।
नारी निजता के प्रश्न सी,शोषण के विद्रोह सी,
लहू बनकर बह गई,नारी की प्रतिशोध सी।
द्रोपदी का महान चरित्र,मन से थी पवित्र,
कृष्ण की इस कृष्णा का वेदना सी चित्र।
हरि अनंत, हरि कथा अनंत,
कहती जाए दुनिया सारी।
भक्त वत्सला लाज बचाए,
भक्तों के गिरधारी।
श्रापवश एक स्त्री पांच पतियों में बंट गई,
हरण हुआ था स्वाभिमान का,जो घटना घट गई।
जीवनगाथा मेरी एक क्रीड़ा में थी खड़ी,
हार गए पांडव,धर्म की बलि चढी।
ज्ञानी,गुणी जन और पितामह मौन ही तकते रहे,
कुलवधू के वस्त्रहरण के, प्रतिभागी बनते रहे।
लोभ ने एक परिवार को दो परिवार कर दिया,
सज्जनों का मौन ही कुल का काल बन गया।
द्रुपद की राजकुमारी के लिए
एक युद्व ठन गया,
द्रोपदी के चीरहरण से,
बन गया इतिहास।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज