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15 Jun 2023 · 1 min read

द्रुतविलम्बित छंद

विहग वृंद उमंगित शोर है।
उदित भानु तरंगित भोर है।।
क्षितिज रक्तिम प्रकृति घेरता।
अतुल दृश्य विहान बिखेरता।।

गगन शोभित है खग वृंद से।
पवन के थपके मृदु मंद से।।
विपिन बाग सुगंध सुधा है।
मुदित है रवि मुग्ध वसुधा है।।

प्रभु पुकार पुकार करें सदा।
हरि यही बस जीवन संपदा।।
सकल पीर व संकट टाल दो।
दरश दो अब कर निहाल दो।।

रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
69 Views
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