दौलत में न भटके इन्सान
दौलत में बिक गया
इन्सान
मान ईमान सब
त्याग कर
भाई , भाई का
हो गया दुश्मन
दौलत
तेरी चाह में
रिश्तों की नींव
कर दी खोखली
दौलत
तेरे मोह ने
बचपन में
माँ बाप पाले
खड़ा करे पैरो पर
पत्नी- बच्चे , पैसा
हो जाती दौलत
माँ बाप है
पत्थर सडक के
दौलत पर
गुमान न कर
कई देखे
राजा बनते रंक
रहो मर्यादा में
रहो प्रेम से
चाहे हो दौलत वाले
या हो
सड़क के फकीर के
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल