दौर
हर बड़े मुद्दे को एक नये मुद्दे से दबाया गया ,
जुल्म जब भी बढा और जुल्म ढ़ाया गया ..
चीखें बेटियों की दबाने के लिए ,
तालिब ए इल्मों पे ज़ुल्म ढाया गया ..
बन के आवाम के हक की सदा ,
उभरा जो एक रविश कुमार ..
जाने क्या कुछ न उसके साथ ,
जुल्म छुप छुपा के ढाया गया ..
हम हैं किस दौर में ;किस मुल्क में ,
के क्या कहिए ,किससे कहिए ..
मर रहें है यहां हर रोज न जाने कितने ,
मुल्क के हो रहे टूकड़े न जाने कितने…