दौर-ए-इलेक्शन
दौर-ए-इलेक्शन में कहाँ कोई इंसान नजर आता है
कोई हिन्दू, कोई दलित, कोई मुसलमान नजर आता है
बीत जाता है जब इलाकों में इलेक्शन का दौर जनाब
तब हर शख्स रोटी के लिए परेशान नजर आता है।
शेखर विश्वकर्मा के पोस्ट से लिया गया और अब मेरा मूल सृजन
ये सियासत भी कमाल की चीज है
यहाँ का हर आदमी इन्हें बिकाऊ सामान नजर आता है
आपस में तोड़ना हुनर है इनका बहुत खूब
यही बात है कि राज करना अब इतना आसान नजर आता है
चुनाव की बिसात पर हरफन मौला हैं ये जालिम
इन्हें तो हर शै में अपना अरमान नजर आता है
सही बात कहते नहीं, नहीं करते समर्थन कभी
बेफजूल में सुनाया तुगलकी फरमान नजर आता है
मंदिरों में पूजा नहीं, मस्जिदों में अजान नहीं
इस दौर में लड़ता हुआ एक दूसरे का ईमान नजर आता है
इंसानियत खत्म सियासत की चाल से
अपनों के दिल का सिर्फ सूना मकान नजर आता है
बंट गए हम टुकड़ों में इस कदर जानिब
कि उन आकाओं में हमें अपना भगवान नजर आता है
मजहबों को बांट कर क्या हासिल होगा इनकों
फरेब आंखों में इन्हें कहीं गीता, कहीं कुरान नजर आता है
खुदा की इनायत कहते हैं जो खुद को
सच कहूँ तो उन खुदा के बंदों में मुझे सिर्फ शैतान नजर आता है
स्वयं की कलम से
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.