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24 Aug 2024 · 1 min read

दौड़ पैसे की

प्रेम गया पानी गया, गंगा रहे नहाय।
पतित पतित के पाहुने, हाड़मांस मिलि खाय।।

पैसा पैसा रट रहा, यह मानव की जात।
घात घाट सब कर रहा, बिन देखे जात कुजात।।

उदर वासना पूर्ति ही, इनका बना विचार।
धर्म कर्म सब छोड़कर, फैलाए व्यभिचार।।

मृत्युलोक का नियम है, होगा सबका अंत।
पापी राक्षस जो भी हो, ईश्वर हो या संत।।

केवल बस रह जायेगा, ईश्वर संत प्रकाश।
“संजय” उस अवशेष से, शेष रहेगी आस।।

जय हिंद

Language: Hindi
1 Like · 74 Views

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