*दो हास्य कुंडलियाँ*
दो हास्य कुंडलियाँ
( 1 )
दूसरी शादी
फिर से मन दूल्हा बना ,हुई आयु जब साठ
तन नर्तन करने लगा , प्रेम-गीत का पाठ
प्रेम-गीत का पाठ ,छींट की शर्ट सुहाती
दुनिया बोली शर्म ,बुढ़उ को अरे ! न आती
कहते रवि कविराय ,चढ़ा यों पानी सिर से
देकर प्रथम तलाक , रचाई शादी फिर से
( 2 )
बेचारे पतिदेव
खाते श्री पतिदेव हैं ,पत्नी जी से डाँट
अंदर की यह बात है ,पड़ते अक्सर चाँट
पड़ते अक्सर चाँट ,चोट बेलन पहुँचाता
कर्कश रौद्र स्वरूप ,रहा हर समय डराता
कहते रवि कविराय ,सात जन्मों के नाते
बीत रहे दिन-रात ,मार पत्नी से खाते
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451