दो शे’र
पुर्ज़ा – पुर्ज़ा मुहब्बत का जोड़ा है हमनें ।
घरौंदा फ़िर नफ़रत का तोड़ा है हमनें ।।
बने बैठे थे पारसा जो ज़माने में यारों ।
भंडा ऐसे लोगों का फोड़ा है हमनें ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर , मध्यप्रदेश
©काज़ीकीक़लम
पुर्ज़ा – पुर्ज़ा मुहब्बत का जोड़ा है हमनें ।
घरौंदा फ़िर नफ़रत का तोड़ा है हमनें ।।
बने बैठे थे पारसा जो ज़माने में यारों ।
भंडा ऐसे लोगों का फोड़ा है हमनें ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर , मध्यप्रदेश
©काज़ीकीक़लम