Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Jul 2023 · 1 min read

दो शब्द ढूँढ रहा था शायरी के लिए,

दो शब्द ढूँढ रहा था शायरी के लिए,
लेकिन लोगों के दिल में दिमाग नज़र आया।

– शशि धर कुमार

458 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Shashi Dhar Kumar
View all
You may also like:
कलाकार
कलाकार
Shashi Mahajan
मुफ़लिसों को मुस्कुराने दीजिए।
मुफ़लिसों को मुस्कुराने दीजिए।
सत्य कुमार प्रेमी
प्रशंसा
प्रशंसा
Dr fauzia Naseem shad
हिन्दी भाषा
हिन्दी भाषा
राधेश्याम "रागी"
स्वप्न ....
स्वप्न ....
sushil sarna
थोड़ी दूरी,
थोड़ी दूरी,
Sonam Puneet Dubey
वक्त और हालात जब साथ नहीं देते हैं।
वक्त और हालात जब साथ नहीं देते हैं।
Manoj Mahato
नया
नया
Neeraj Agarwal
जब मैं इस धरा पर न रहूं मेरे वृक्ष
जब मैं इस धरा पर न रहूं मेरे वृक्ष
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
जय श्री राम
जय श्री राम
Neha
"गिल्ली-डण्डा"
Dr. Kishan tandon kranti
कर्म कभी माफ नहीं करता
कर्म कभी माफ नहीं करता
नूरफातिमा खातून नूरी
मै ना सुनूंगी
मै ना सुनूंगी
भरत कुमार सोलंकी
डॉ. नामवर सिंह की रसदृष्टि या दृष्टिदोष
डॉ. नामवर सिंह की रसदृष्टि या दृष्टिदोष
कवि रमेशराज
सर्वप्रथम पिया से रंग
सर्वप्रथम पिया से रंग
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
अनपढ़ प्रेम
अनपढ़ प्रेम
Pratibha Pandey
Future Royal
Future Royal
Tharthing zimik
सिंदूर..
सिंदूर..
Ranjeet kumar patre
जीया ख़ान ख़ान
जीया ख़ान ख़ान
goutam shaw
हां,अब समझ आया
हां,अब समझ आया
Seema gupta,Alwar
प्री-डेथ
प्री-डेथ
*प्रणय*
!...............!
!...............!
शेखर सिंह
हिंदुत्व अभी तक सोया है, 2
हिंदुत्व अभी तक सोया है, 2
श्रीकृष्ण शुक्ल
“ भाषा की मृदुलता ”
“ भाषा की मृदुलता ”
DrLakshman Jha Parimal
नानी का गांव
नानी का गांव
साहित्य गौरव
प्रेम जब निर्मल होता है,
प्रेम जब निर्मल होता है,
हिमांशु Kulshrestha
भिनसार ले जल्दी उठके, रंधनी कती जाथे झटके।
भिनसार ले जल्दी उठके, रंधनी कती जाथे झटके।
PK Pappu Patel
* आओ ध्यान करें *
* आओ ध्यान करें *
surenderpal vaidya
मुझे ना पसंद है*
मुझे ना पसंद है*
Madhu Shah
**OPS माँग भरा मुक्तक**
**OPS माँग भरा मुक्तक**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
Loading...