दो लघु कवितायेँ
दो लघु-कवितायेँ
१, यह दुनिया एक धोखा है,
फूलों में छुपे हो जैसे कई कांटेें।
निभाते भी जा रहे और चलते भी जा रहे है.
संदेहास्पद जीवन जिए जा रहे हैं,
क्या पता कब दिल ज़ख़्मी हो जाये ,
हमारे पांव की तरह !
२, पत्थरों की हवेली में रहता है,
एक कोमल दिल ,और एक शीशा।
किस तरह बचाएं हम इस शीशा -ऐ-दिल को,
ना जाने कब टूट कर बिखर जाये।
शीशा टुटा तो नया आ जायेग,
मगर यदि दिल टुटा तो !