दो मुक्तक
दो मुक्तक
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(1)
न आत्मा का पता कोई न खुद को जान पाया मैं
न जाने कर चुका कितना सफर अनजान आया मैं
पता मैं पूछता अपना स्वयं से मौन हो-होकर
मिला उत्तर में केवल मौन बस अज्ञान लाया मैं
(2)
न जाने कब उसे देखूँ यही बस प्रश्न पलता है
मुझे मालूम क्या कब मन अ-मन होकर मचलता है
मैं रोजाना गुजरता हूँ उसी के घर के आगे से
अभी तक न विफलता है ,अभी तक न सफलता है
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रचयिता :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451