दो मिनट की मासूम मोहब्बत: A tale of Love {part 1}
सवेरे का वक़्त था, आँख मलते हुए उठा ही था मैं, चेहरा-धो, क्रीम-मल चल पड़ा दूध लेने नुक्कड़ की दुकान को। किताबों से भरा बस्ता टाँगे, नुक्कड़ पर खड़ी दिखी तुम। तुमने भी मुझे स्लेटी जैकेट पहने, गुज़रते हुए देखा। दोनों ने ऐसे देखा कि इक-दूजे की नज़र में ना आने पाये। हमें इस तरह देख ओटले पर बैठी मोहब्बत मुस्कुरा पड़ी। हाँ, मोहब्बत, वो थी वहाँ, उसी के सामने तो हुआ सब।
ना बात हुई, ना इशारा कोई, पर आँखों-आँखो में जैसे जादू हुआ हो कोई। मैंने तुम्हें देखते हुए दूध लिया, दद्दू की दुकान से, तुम भी बार-बार मुड़ कर मुझे देखती रही। एक पल के लिए सब जैसे रुक सा गया। मैं दूध लेकर जब लौटने लगा, तुम्हारी स्कूल-बस सामने आ रुकी। तुम बस में चढ़ विंडो सीट पर ऐसे बैठी जैसे सालों से इंतज़ार किया हो मुझे देखने का खिड़की से उस सीट की। खिड़की में तुम्हें देख ही रहा था कि बस चल पड़ी। जाते हुए तुम्हारी आँखों में नमी सी दिखी, ठीक वैसी ही जैसे कि किसी मछुआरे का घर समंदर किनारे आई बाढ़ ने तबाह कर दिया हो। जो होता मेरे वश में, स्कूल की यूनिफॉर्म पहन चढ़ जाता बस में एक रोज़ के लिए तुम्हारे बगल वाली सीट पर बैठने को।
आँखों में तुम्हें कुछ पल और ना देख पाने का मलाल और दिल में तुम्हारे मिलने की खुशी के साथ तुम्हारे जाने के गम को लिये, मैं लौट आया। मगर, नुक्कड़ पर ही बैठी रही “मोहब्बत”, कल के इंतेज़ार में। वो कल जब तुम और मैं, फ़िर उसी नुक्कड़ पर मिले, ना बात हो ना इशारा कोई।
मगर, मैं जीना चाहता हूँ इस आज को, हर रोज़, हर पल, आज, जब तुम मिली और मोहब्बत हुई, दो मिनट की मासूम सी, मोहब्बत।।
(अगर आपने इस कथा को पढ़ा, तो कमेंट section में बताईएगा यह आपको कैसी लगी।
अगर यह आपको पसंद आएगी तो अगले भाग को जल्द से जल्द प्रकाशित करने का प्रयास रहेगा।।)