दो बोल प्यार के
**** दो बोल प्यार के ****
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बोलने से पहले सदा तोलो,
फिर मुख मुखरित हो बोलो।
यही बोल बढ़ाते सम्मान हैं,
चिंतन कर सारे भेद खोलो।
ये दिल तो बड़ा कमज़ोर सा,
दो बोल मीठे बोलकर जीतो।
कड़वे बोल होते दुख से भरे,
रंज और तंज भरे मत बोलो।
यही बोल चरित्र को आंकते,
शिष्टाचारी मर्यादा मत तोड़ो।
बड़ो को मान-सम्मान करो,
छोटों पर सदा प्रेमरस डोलो।
बहन-बेटी तो होती साँझली,
अपशब्द भरे बोल न बोलो।
जाति-पाति से ऊपर उठो,
दो शब्द प्रेम के सदा बोलो।
औरत जुती नहीं रही पैर की,
आदर-सत्कार पूर्वक बोलो।
तरकश तीरों भरा मनसीरत,
निशाना धार तीर सारे खोलो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली(कैथल)