दो बहनें
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दो बहनें
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मुट्ठी भर राख है , चुटकी भर जिंदगी ।
मौत जिंदगी दोनों, पर हैं बहना सगी ।
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आती जब जिंदगी, मुस्काहट लाती है ,
देती बधाई है, हँसे नाच-गाती है,
ताना-बाना बुनती, आशा की ज्योति जगी ।
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दूजी बहना जाने, कब चुपके आ जाये,
चुपके से बहना को , आकर के छल जाये,
पीड़ा की दे जाये, सौगातें अश्रु पगी ।
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दोनों नहीं मिलतीं, आँख मिचौली खेलें ,
दुख-सुख के पापड़-से, जन-जन घर-घर बेलें ,
बीच बजरिया होती, राहजनी और ठगी ।
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निश्चित नहीं कुछ है, छोटी कहानी है ,
राख भी न बच पाती, बह जाता पानी है ,
चिड़िया से जीवन को , मौत मौन दाब भगी ।
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महेश जैन ‘ज्योति’
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