*दो बच्चों का कानून और रामभरोसे का दुख : हास्य व्यंग्य*
दो बच्चों का कानून और रामभरोसे का दुख : हास्य व्यंग्य
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रामभरोसे दुखी था । उसके एक हाथ में राशन कार्ड था । दूसरे हाथ से अपने बारह बच्चों को पकड़े हुए था ।दो-तीन चारपाइयों पर पूरा परिवार बैठा हुआ विचारमग्न था। एक ही प्रश्न मन में कौंध रहा था -अब क्या होगा ? बच्चे कैसे पलेंगे ? अब तक तो उसे पूरी आशा थी कि शहर – मोहल्ले – पड़ोस के बाकी लोग जो कमा रहे हैं ,उसमें से कुछ पैसा सरकार के पास जाता है और वह उसे वापिस मिल जाता है तथा घर का खर्च आसानी से चल जाएगा । लेकिन अब तो सरकारी नौकरी में प्रमोशन तक के लाले पड़ रहे हैं । ढाई साल बाद प्रमोशन होना था । अब कैसे हो पाएगा ?
जब मैं रामभरोसे के पास पहुंचा, तब उसने एक प्रकार से चीखते हुए कहा “इतनी जल्दी क्या थी ? ”
मैंने शांत भाव से पूछा “फिर कब करते ?”
वह बोला “जहां सत्तर साल इंतजार किया ,वहां सत्तर साल और इंतजार कर लेते ? जनसंख्या नियंत्रण का विषय कोई भागा थोड़े ही जा रहा था ? ”
फिर दार्शनिक अंदाज में कहने लगा- “कम से कम जनता को सचेत तो करना चाहिए था ! लोगों को समझा-बुझाकर और जनसंख्या नियंत्रण के फायदे बताकर प्रचार -प्रसार करना चाहिए था । ”
मैंने प्रतिप्रश्न किया “क्या सत्तर साल प्रचार-प्रसार और किया जाता ?”
वह रुआंसा होकर बोला “हमारी तो पूरी प्लानिंग ध्वस्त हो गई । बारह बच्चे हैं । सोचा था ,सबकी शादी सरकार करा देगी। सबको मकान सरकार दिला देगी । नौकरी तो सरकार से प्राप्त करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार होता ही है । राशन से गेहूं चावल चीनी मिलती रहेगी। छुटपुट खर्चे के लिए थोड़ा बहुत काम कर लेंगे। बीमार पड़े तो सरकारी अस्पताल है । आखिर सरकार का भी कोई फर्ज है कि नहीं ?”
मैंने कहा “देखो भैया ! तुम इस समय पीड़ित हो । दुखी हो । मैं कोई भी प्रश्न पूछ कर तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता। लेकिन क्या सारा फर्ज सरकार का ही है ? और यह जो जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार कानून बना रही है क्या यह सरकार का फर्ज नहीं था ? आखिर कब तक दो-दो बच्चे वाले परिवार कमाएँ और सरकार को पैसा दें और फिर सरकार तुम्हारे बारह बच्चों का पालन-पोषण करे ? क्या इसी को फर्ज कहते हैं ?”
राम भरोसे अब ढोड़ी पर हाथ रखकर अतीत की यादों में खोने लगा । “साहब ! हमारे बारह बच्चे हैं । हर काम में हमारा महत्व रहता था । जब चुनाव होते थे तो बाकी मोहल्ला एक तरफ ,हमारा अकेला घर एक तरफ । मैं पिता था । इसलिए सारे वोट मेरे इशारे पर पड़ते थे । जिसे वह डलवा दूं, वह चुनाव जीत जाता था । बड़ी बात हुआ करती थी । अब आपने कानून बना दिया और हमें ज्यादा बच्चों वाला कहकर हाशिए पर डालने लगे । कई बार लोगों ने हमसे कहा कि रामभरोसे ! तुम चुनाव में खड़े हो जाओ । शहर और गांव के आधे वोट तो तुम्हारे अपने घर के हैं । अब आप कहते हो कि हम चुनाव ही नहीं लड़ सकते ! ऐसा कैसे चलेगा ? ”
रामभरोसे के घर में वातावरण दुख भरा था । सभी बारह बच्चे आंखों में थोड़े बहुत आंसू लिए हुए थे । तीन बच्चों की शादियां हो गई थीं। अब बाकी नौ की शादी की जितनी चिंता उनके माता-पिता को थी उससे ज्यादा चिंतित वह स्वयं थे। जनसंख्या नियंत्रण के बारे में ठोस काम शुरू जो होने लगा था।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451