दो पटरी के मेल से चलती रेल
*** दो पटरी के मेल से चलती रेल ***
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दो पटरी के मेल से,चल पड़ती है रेल।
चलती तीव्र वेग से, घर पहुंचाती रेल।।
कोरोना की मार ने, खूब बनाई रेल।
जन जन घर मे है बन्द ,जैसे घर मे जेल।।
छोटे जब सब बाल थे,खेलते रहे खेल।
निक्कर,कमीज पकड़ के,बनाते रहे रेल।।
भांति भांति के जन मिले,बैठे अन्दर रेल।
बातचित करते करते ,बढ़ जाता है मेल।
बैठे बैठे रेल में , आँखे होती चार।
प्रणय जाल में बंध के,बढ़ती बाल कतार।।
काल रूप विकराल ने,रोकी रेल रफ्तार।
बिना किसी के बाँध से, बढ़ा द्वेष व्यापार।।
मनसीरत बेहाल हैं, देख देश का हाल।
खुदा की रेल में फंसा,बिछाया यहाँ जाल।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)