दो नदी के किनारे
दो नदी के किनारे
दो नदी के किनारो का मिलना क्या,
दो नदी के किनारो का बिछड़ना क्या,
अहसास ही बहता है पानी बनकर ,
उस बहते अहसास का करना क्या,
जिन्दा ही रहेंगे उसमे जिव सारे,
उनको निकाल धरती पर करना क्या,
बनाई हुई है जिन्होंने अपनी दुनिया,
उस दुनिया में जाकर करना क्या ,
चमकती है सुबह की किरणों सी लहरे,
उसमे परछाई बनकर तुमको करना क्या,
तूफ़ान भी आयेगा एक दिन दरिया में,
उस तूफान में तनहा जीकर मरना क्या,
दो नदी के किनारो का मिलना क्या,
दो नदी के किनारो का बिछड़ना क्या,